मुग़ल साम्राज्य का तीसरा बादसाह शेर शाह सूरी 1540-1545

शेर शाह सूरी का प्रारंभिक इतिहास – Sher Shah Suri In Hindi

शेर शाह सूरी का जन्म फरीद खान के नाम से भारत के बिहार प्रान्त के सासाराम ग्राम में हुआ था. उनका उपनाम सूरी उनके प्राचीन ग्राम सुर से लिया गया था. जब वे युवावस्था में थे तभी उन्होंने एक शेर का शिकार किया था और तबसे उनका नाम शेरशाह रखा गया. उनके दादा इब्राहीम खान सूरी नारनौल के प्रसिद्ध जागीरदार थे और कुछ समय के लिए उन्होंने दिल्ली के शासक का भी प्रतिनिधित्व भी किया था. आज भी नारनौल में इब्राहीम खान सूरी का स्मारक बना हुआ है. तारीख-खान जहाँ लोदी ने भी इस बात को स्पष्ट किया था. शेरशाह पश्तून सुर समुदाय से संबंध रखते थे (इतिहास में पश्तून अफगानी के नाम से भी जाने जाते थे). उनके दादा इब्राहीम खान सूरी एक साहसी योद्धा थे
अपने बेटे हसन खान के साथ शेर शाह के पिता अफगानिस्तान से हिंदुस्तान वापिस आये, वे जिस जगह पर आये थे उस जगह को अफगान भाषा में “शर्गरी” और मुल्तान भाषा में “रोहरी” कहते थे. वे जहा रहते थे वहा एक ऊँची पर्वतश्रेणी थी, जो गुमल के किनारे पर स्थित था. बाद में उन्होंने मुहब्बत खान सुर, दौड़ साहू-खैल की सेवा की जिन्होंने शेर शाह को हरियाणा और बह्कला की जागीर दी. और बाद में वे बज्वारा के परगना में रहने लगे.
एक शानदार रणनीतिकार शेर शाह ने खुद को सक्षम सेनापति के साथ ही एक प्रतिभाशाली प्रशासक भी साबित किया. इतिहास में तीन धातुओ की सिक्का प्रणाली जो मुघलो की पहचान बनी वो शेरशाह द्वारा शुरू की गयी थी. साथ ही पहला रूपया शेरशाह के शासन में जारी हुआ था जो आज के रूपया का अग्रदूत है. रूपया आज भारत, पकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका इत्यदि देशो में राष्ट्रिय मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता है.

22 मई 1545 में चंदेल राजपूतो के खिलाफ लड़ते हुए शेरशाह सूरी की कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान एक बारूद विस्फोट से मौत हो गयी. शेरशाह ने अपने जीवनकाल में ही अपने मकबरे का काम शुरू करवा दिया था. उनका गढ़नगर सासाराम स्थित उनका मकबरा (Sher Shah Suri Tomb) एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है.

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